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क्या दिखा रहे हैं हम अपने बच्चों को ?

ये है हिंदुस्तान मेरी जान
ये है हिंदुस्तान मेरी जान
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आमतौर पर अश्लीलता और कामुक मानसिकता जन्म से नहीं होती हैं बल्कि ये तो बचपन से टीवी और अश्लील फिल्में देख- देखकर या दिखा दिखाकर बनाई जाती है। आज से 250 वर्ष पूर्व भारत मे माँ बहिनों को पूजा जाता था लेकिन आज तथाकथित “पश्चिमी महिला मुक्ति” के दौर मे हर एक सेकंड में 50 से ज्यादा बहिनों के साथ छेड़खानी, हर एक मिनट में बलात्कार और हर घंटे 100 से ज्यादा बहिनों के एमएमएस बनाए जा रहे हैं। ये उस भारत में हो रहा है जहां कहा जाता है:

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” – जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का निवास होता है।

टीवी और सिनेमा में सिर्फ दो ही चीज़ें दिखाई जा रही है : Violence और सेक्स की Vulgarity.

भारत के छोटे छोटे बच्चे 3-4 साल की उम्र से यही सब देख रहे हैं। एक 3 साल का बच्चा जब से टीवी देखना शुरू करता है और यदि उसके घर में ‘केबल कनेक्शन’ है और प्रतिदिन लगभग 4- 5 घंटे के हिसाब से टीवी देखे तो वो बच्चा 20 साल की उम्र तक आते आते अपनी आँखों से करीब 33,000 हत्याएँ और करीब 72,000 बलात्कार/ छेड़खानी/ अश्लीलता की घटनाएँ देखता है।


* हर फिल्म में मर्डर, हर एपिसोड में मर्डर दिखाते हैं और ये हिंसा हमारे बच्चों को इसलिए दिखाई जाती है क्यूंकी हमारी संस्कृति अहिंसा वाली है और इसको अगर बर्बाद करना है तो अहिंसा की जगह हिंसा को लाना पड़ेगा। हिंसा हर आदमी तभी करेगा जब बार बार हिंसा देखेगा और ये बार बार हिंसा देखने का नतीजा है कि मन की दया और करुणा खत्म हो जाती है। हमारे देश में एक कहावत है: “दया धर्म का मूल है।” मतलब जब दया ही नहीं होगी तो धर्म कहाँ टिकने वाला है और ये सीधा आक्रमण हमारे धर्म और संस्कृति पर है।

ये सब देख देखकर हम इनते संवेदना शून्य हो गए हैं कि 1984 में भोपाल गैस त्रासदी में 10 हज़ार लोग मर गए तो किसी कि आंखों में आँसू नहीं निकले। ये Violence देख देखकर हम संवेदना शून्य हो गए हैं।

अमेरिका में दुनिया में 1 मिनट में सबसे ज्यादा बलात्कार होते हैं, 1 मिनट में सबसे ज्यादा छेड़छाड़ के केस होते हैं। अमेरिका में कुछ शहर तो ऐसे हैं जहां शाम 6 बजे के बाद कोई लड़की निकल जाए तो लौटने वाली नहीं है उसका गैंग रेप तो निश्चित है।

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ये विदेशी चैनल हमें कभी स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानन्द को आदर्श प्रस्तुत नहीं करते हैं, नालायक संजय दत्त और शाहरुख खान को आदर्श दिखाते हैं। हमारे यहाँ बचपन से सिखाया जाता है :

“If wealth is lost nothing is lost, If health is lost something is lost & If character is lost everything is lost.”

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सोचिए ‘मोहनदास’ नाम का एक छोटा सा बच्चा हरिश्चन्द्र का नाटक देखने के बाद सत्यवादी हो गया। तो हमारे बच्चे जो युवावस्था तक आते आते 33,000 हत्याएँ और करीब 72,000 बलात्कार/ छेड़खानी/ अश्लीलता की घटनाएँ टीवी और सिनेमा में देख रहे हैं वो क्या बनने वाले हैं ?

यही बच्चे उम्र के एक दौर में पहुँचकर सड़क के किनारे खड़े हो जाएंगे। कोई भी बहन जाएगी तो सीठी बजाएंगे या ताना मारेगा।जरा पूछिये अपने अपने दिल से कि ये लोग कहाँ से पैदा हो रहे हैं जो हमारी बहन बेटियों को सड़क चलते छेड़ते हैं ?….ये इतनी हैवानियत और इतना राक्षशीपन कहाँ से आ रहा हैं ?

सोचिए ऐसे हैवान, दरिंदे और विकृत मानसिकता के लोग कहाँ से आ रहे हैं जो 3-4 साल से लेकर 15 साल तक की बच्चियों को भी नहीं छोड़ रहे हैं। कहाँ से आते हैं ये लोग ? कौन सिखाता है उनको ? किस स्कूल में ये सब पढ़ाया जाता है या घर में सिखाया जाता है ?

[ ये सिर्फ और सोर्फ दो ही चीजों का परिणाम है: टीवी और सिनेमा ]


भाइयों ये भी सोचें की किस वजह से ऐसी फिल्में और नाटक बन रहे हैं। इसके पीछे अमेरीका और यूरोप की निरोध बेचेने वाली कंपनियां और गर्भ निरोधक बेचने वाली कंपनियां हैं।

बन रहा मैकाले के सपनों का भारत !

भारतीयता बचाएं, देश बचाएं, संस्कृति बचाएं !

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