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राजनीति में छुआछूत

ये है हिंदुस्तान मेरी जान
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आम जनमानस सिर्फ यही सोचता था की ये  छुआछूत की कुप्रथा सिर्फ समाज तक ही सीमित है लेकिन अब इस कुप्रथा ने अपनी पैठ राजनीति में भी बना ली है। जिस प्रकार पिछले 10 वर्षों से गुजरात के मुख्यमंत्री ‘श्री नरेंद्र मोदी’ को राजनीतिक बिरादरी ने अछूत मान रखा है उससे ये बात स्पष्ट हो जाती है। देश को एक विकसित राज्य देने वाले मुख्यमंत्री के साथ ऐसा बर्ताव किया जाना क्या लोकतन्त्र का अपमान नहीं है ?

गुजरात की जनता नरेंद्र मोदी को बार बार जिताकर गद्दी पर बैठाती है और उस राज्य के मुख्यमंत्री का अपमान करना, उन 6 करोड़ गुजरातियों का अपमान है। आए दिन आप लोग नरेंद्र मोदी के लिए विरोधियों द्वारा अपशब्द सुनते रहते होंगे। एक राज्य के मुख्यमंत्री के लिए जिसका इतना बड़ा जनाधार है इस तरह के शब्द कितने उचित हैं इसका अंदाज़ा आप खुद लगाईए ?

नरेंद्र मोदी 2002 में हुए दंगों के लिए कितने दोषी हैं (हैं भी या नहीं) यह पता लगाना और सज़ा देना कानून का काम है लेकिन उनके द्वारा किए गए राज्य के विकास और गुजरात को विकसित राज्य बनाने के कामों को भूलाकर सिर्फ 2002 के दंगो के लिए उन्हें बार बार अपमानित करना तो तभी सही होगा जब भारत में आज़ादी के बाद सिर्फ गुजरात में 2002 में ही दंगे हुए हो। क्या 1984 के सिख दंगों के लिए पूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गांधी को दोषी ठहराया जा सकता है ? क्या असम के दंगों के लिए तरुण गोगोई को दोषी माना जा सकता है ? क्या उत्तर प्रदेश में पिछले 7 माह में हुए 11 सांप्रदायिक दंगों के लिए अखिलेश यादव को दोषी माना जा सकता है ? जवाब आप खुद सोचिए।

सोनिया गांधी (सोनिया एंटोनिया माइनो) के द्वारा नरेंद्र मोदी को “मौत का सौदागर”कहा गया। एक मुख्यमंत्री को जिसको उच्चतम न्यायालय की एसआईटी ने क्लीन चिट दे दी हो उस पर ऐसा इल्ज़ामलगाना कितना सही है ? हाल ही में चुनाव प्रचारों के दौरान काँग्रेस के मणिशंकर अय्यर द्वारा नरेंद्र मोदी को “लहू पुरुष”, “असत्य का सौदागर” कहा। काँग्रेस सांसद हुसैन दलवी और गुजरात काँग्रेस के विधान सभा मे प्रतिपक्ष के नेता अर्जुन मोढ्वाडिया द्वारा अलग अलग सभाओं में नरेंद्र मोदी को “चूहा” कहा गया। काँग्रेस प्रवक्ता दिग्विजय सिंह के द्वारा भी नरेंद्र मोदी को 3-डी प्रचार पर कटाक्ष करते हुए “रावण” कहा गया। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के सहयोगी संजय सिंह ने इसी वर्ष अगस्त में हुए अनशन के दौरान नरेंद्र मोदी को “हत्यारा” तक कह दिया। इसके अलावा भी दिग्विजय सिंह आए दिन नरेंद्र मोदी के लिए कुछ न कुछ अपशब्द बोलते रहते हैं।

कहने का तात्पर्य है कि राजनीति में नीतिओं की बुराई और चर्चा होनी चाहिए लेकिन किसी व्यक्ति (जो मुख्यमंत्री हो) को सरकार के बड़े बड़े मंत्रियों और नेताओं के द्वारा अपशब्द कहना लोकतन्त्र को गाली देने के समान है। नरेंद्र मोदी भारतीय राजनीति के पहले व्यक्ति हैं जिन पर चुनावों में व्यक्तिगत आरोप लगाए जाते हैं जबकि होना ये चाहिए की उनकी नीतिओं पर चर्चाएँ हों। क्या आपने नरेंद्र मोदी के अलावा कभी किसी मुख्यमंत्री/ प्रधानमंत्री/ सांसद/ विधायक के लिए इतने अपशब्द, तिरस्कार और नफरत देखी ? इतना तिरस्कार यदि लाखों करोड़ के घोटालेबाज़ ए॰ राजा, सुरेश कलमाड़ी और कनिमोरी का हुआ होता तो शायद घोटाले करने से पहले नेताओं के दिमाग में इनकी छवि आती और हो सकता वो घोटाला न करते लेकिन अफसोस जिस  व्यक्ति की नीतिओं और विकास की चर्चाएँ दुनियाभर में हो रही हैं उसी को देश में अपमानित करने और अछूत बनाने का चलन सा निकल पड़ा है।

एक मुख्यमंत्री को पूरी की पूरी काँग्रेस पार्टी और मीडिया द्वारा देश में अछूत बनाकर पेश किया जा रहा है। नरेंद्र मोदी को गाली या अपशब्द कहकर स्वयं को “सेकुलर” साबित करने की होड़ सी चल पड़ी है। योगगुरु स्वामी रामदेव जी महाराज ने नरेंद्र मोदी के साथ एक कार्यक्रम में मंच साझा किया तो मीडिया ने उसे ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर सनसनी की तरह दिखाया गया। उनकी मुलाक़ात के मायने निकालने के लिए विभिन्न चैनलों पर चर्चाएँ हुईं। वहीं हाल ही में आज तक चैनल के ‘एजेंडा आज तक’ कार्यक्रम में आदरणीय अन्ना हज़ारे जी भी आए, उनसे ये सवाल पूछा गया: “क्या वो उस मंच पर जाएंगे जिस पर मोदी हो ?”

आज जब गुजरात के मुसलमान भी मोदी का समर्थन करते हैं और राजीव गाँधी फाउंडेशन की रिपोर्ट कहती है कि आज पूरे देश मे सबसे ज्यादा सुखी मुसलमान गुजरात में हैं तो वहीं कुछ दिन पहले आज तक ने ही एक कार्यक्रम दिखाया जिसका नाम था “मुसलमानों के विरोधी नरेंद्र मोदी ?” क्या ऐसे कार्यक्रमों से देश में सौहार्द और एकता आएगी ? क्या ये मुसलमानों के लिए मोदी के प्रति नफरत घोलने का काम नहीं हो रहा है ?

पूरे देश में नरेंद्र मोदी को जिस तरह से अछूत बनाकर पेश किया जा रहा है उससे किसी षणयंत्र की बू आती है। यदि कोई व्यक्ति नरेंद्र मोदी या उनके कार्यों की सराहना करे तो उस पर तुरंत ही ‘सांप्रदायिक’ होने या ‘संघ’ के होने का आरोप मढ़ दिया जाता है। सिर्फ खुद को सेकुलर दिखने के लिए नरेंद्र मोदी को गाली देना क्या लोकतन्त्र में सही माना जाएगा ?? लेकिन आज इस सख्स (मोदी) के बारे में हर कोई जानना चाह रहा है चाहे वो इनकी विचारधारा से इत्तेफाक रखता हो या नहीं। बिना किसी अपशब्द का जवाब दिये नरेंद्र मोदी स्वयं ही मीडिया में बने रहते हैं और इनकी लोकप्रियता का ग्राफ दिन प्रति दिन बढ़ता ही जा रहा है।

http://anandpriyarahul.blogspot.in/2012_12_01_archive.html

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