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भगवान भी पछता रहा है

ये है हिंदुस्तान मेरी जान
ये है हिंदुस्तान मेरी जान
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अपनी दुनिया देखकर भगवान भी सिसक उठा,

अखबारों में अस्पतालों का विज्ञापन आ रहा है।

ईश्वर का दूसरा रूप माना जाने वाला ‘चिकित्सक’,

कमिशन के लिए दवाओं का पुलिंदा बंधा रहा है।

सबसे अनमोल कृति नारी की दशा भी दयनीय है,

कोई भ्रूण हत्या तो कोई दहेज के लिए जला रहा है।

उस वक़्त उसके दिल में भी एक दर्द सा उठा,

जब देखा उसने भाई- भाई का गला दबा रहा है।

प्रेम, स्नेह, भाईचारा ये सब हुई बीती बातें,

यहाँ आदमी आदमी को मारकर खा रहा है।

भेजे थे स्त्री पुरुष सृष्टि उत्थान के लिए,

चुनौती देकर यहाँ पुरुष पुरुष रास रचा रहा है।

व्यापार की सारी परिभाषाएँ हुईं बेमानी यहाँ,

कोई स्त्री तो कोई भगवान बेचकर कमा रहा है।

न्याय दिलाने वाला अधिवक्ता भी यहाँ,

बेईमानों के झूठ को सच बनाकर दिखा रहा है।

सिद्धान्त, आदर्शों, धर्म पर न चलता यहाँ कोई,

कोई अपनी ढपली तो कोई अपना राग बजा रहा है।

बड़े प्यार से रचा था उसने अपने कर-कमलों से,

अपनी दुनिया देखकर आज वो भी पछता रहा है…..!

अपनी दुनिया देखकर आज वो भी पछता रहा है…..!

http://anandpriyarahul.blogspot.in/2013/01/blog-post.html

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