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मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति

ये है हिंदुस्तान मेरी जान
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एक नज़र पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश में हुए दो अलग अलग जघन्य हत्याकांडों पर :

* कुंडा, प्रतापगढ़ के पुलिस उपाधीक्षक जिया- उल- हक़ की हत्या

* टांडा, अंबेडकर नगर में हिंदू युवा वाहिनी के जिलाध्यक्ष रामबाबू गुप्ता की हत्या

एक जनसेवक और मुख्यमंत्री होने के नाते दोनों ही घटनाएँ अखिलेश यादव के लिए घृणित वारदातकी श्रेणी में आती हैं लेकिन जिस तरह से दोनों हत्याओं पर सरकार का रुख अलग अलग रहा है उसके पीछे मुस्लिम तुष्टीकरण की ओछी राजनीति की बदबू आ रही है। जिस तरह से दोनों हत्याओं को धार्मिक रंग देकर लाशों पर वोट की राजनीति की जा रही है वो भारत की एकता, अखंडता और धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरे की सूचक है। भारतीय संविधान में जिस सेकुलरिज़्म (धर्मनिरपेक्षता) शब्द की व्याख्या है उसका मूल अर्थ “सर्वधर्म समभाव” के रूप में ग्रहण किया गया था लेकिन नेहरू परिवार द्वारा शुरू हुई मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति ने इस शब्द के मायने ‘एक धर्म विशेष को अपमानित करके धर्म विशेष को खुश करना’ कर दिया है।

एक ओर जहां शहीद जिया- उल- हक़ की हत्या के बाद जामा मस्जिद के ‘इमाम मौलाना बुखारी’ शहीद अफसर के घर जाकर मामले को धार्मिक रंग देने की कोशिश करते हैं, वहीं दूसरी ओर भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ को वैशाली एक्सप्रेस से गोरखपुर जाते समय गाजियाबाद में ही रोक कर गिरफ्तार कर लिया जाता है सिर्फ इस शक के आधार पर कि सांसद अंबेडकर नगर जा सकते हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी को भी बाराबंकी में रोक लिया जाता है। जहां शहीद पुलिस उपाधीक्षक की पत्नी परवीन आजाद के आरोपों के आधार पर बाहुबली विधायक रघुराज प्रताप सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज़ कर लिया जाता है, हत्या की जांच सीबीआई को सौंप दी जाती है वहीं दूसरी ओर जब रामबाबू गुप्ता की पत्नी संजू द्वारा सत्ताधारी दल के विधायक अजीमुल- हक पहलवान पर आरोप लगाए तो राम बाबू के सगे भाईयों के विरुद्ध ही कई धाराओं में मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है।

एक तरफ शहीद पुलिस उपाधीक्षक की पत्नी परवीन आजाद नयी नयी मांगें रखकर शहीद की मौत की कीमत लगा रही हैं तो सरकार भी तुष्टीकरण की राजनीति के चक्कर में उनकी मांगों पर हामी भरती दिख रही है। अपनी नयी मांगों में परवीन आजाद का कहना है कि उनके पति को मरणोपरांत एसपी का रैंक दिया जाए, उनके पति को वीरता पुरस्कार भी दिया जाए, जिस जगह पर उनके पति की मौत हुई है उसे जिया- उल- हक नगर का नाम दिया जाए, उनके पति के गनर पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए, परिवार के 8 सदस्यों को नौकरी दी जाए। जबकि ज्ञात हो की सरकार शहीद पुलिस उपाधीक्षक के परिवार को 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रदान कर चुकी है। वहीं दूसरी ओर रामबाबू गुप्ता के परिवारवालों को अभी तक कोई आर्थिक मदद नहीं दी गयी है और रामबाबू गुप्ता की पत्नी कि इंसाफ की मांग को लगातार दरकिनार किया जा रहा है जिससे आहत होकर उसने बच्चों सहित आत्मदाह की धमकी दी है।

‘लाशों का भी धर्म’ होता है ?

सरकार के अलावा मीडिया ने भी दोनों ही हत्याओं पर अलग अलग रुख अपनाया हुआ है। क्या ऐसी होती है धर्मनिरपेक्षता ?? नरेंद्र मोदी द्वारा 2012 के चुनाव से पूर्व चुनावी मौसम के शीर्ष पर एक  मौलवी द्वारा मुल्ला टोपी पहनने से इंकार करने पर सम्पूर्ण मीडिया वर्ग द्वारा घंटों की बहस में ये साबित करने की कोशिश की गयी कि मोदी धर्म की राजनीति करते हैं लेकिन अखिलेश सरकार के इस तुष्टीकरण पर किसी भी मीडिया वर्ग ने ध्यान नहीं दिया। क्या इस तुष्टीकरण के द्वारा बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को भड़काया नहीं जा रहा है ? क्या सिर्फ मुल्ला टोपी पहनना ही धर्मनिरपेक्षता का सूचक है ? इसी तुष्टीकरण का परिणाम है कि रामबाबू गुप्ता कि हत्या के बाद भड़की भीड़ ने अंबेडकरनगर जिले के टांडा शहर में अल्पसंख्यक समुदाय के कई घर जला डाले गए। इस तुष्टीकरण से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को सोचने पर मजबूर होना चाहिए क्या उन्हें सिर्फ वोट बैंक बनकर रहना है या सम्मानित नागरिक ?

धर्मनिरपेक्ष सांप्रदायिक’ और ‘सांप्रदायिक धर्मनिरपेक्ष’ की लड़ाई और तेज़ होने वाली है। अब अल्पसंख्यक और धर्मनिरपेक्ष लोगों को सोचना होगा कि उन्हें कौन चाहिए ?

— आनन्द प्रिय राहुल

http://anandpriyarahul.blogspot.in/2013/03/blog-post.html

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