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संजय दत्त के समर्थन में लोगों की ओर से दिये जा रहे तर्क भी बड़े विचित्र विचित्र हैं। प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन और पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू का कहना है कि “संजय दत्त को बम ब्लास्ट का दोषी नहीं पाया गया है। वह पहले ही काफी कष्ट झेल चुके हैं, इसीलिए उनकी सजा को माफ कर दिया जाना चाहिए।” हाँ ये सही है कि उन्हें बम ब्लास्ट का दोषी नहीं पाया गया तो उनको सज़ा भी तो आर्म्स एक्ट के तहत 5 वर्ष की ही हुई है, अगर दोषी पाये जाते तो आजीवन कारावास की सज़ा होती, क्या ये रियायत काफी नहीं है ? इसके अलावा संजय दत्त के समर्थन में आने वाले दूसरे व्यक्ति हैं महेश भट्ट। क्या महेश भट्ट के पास संजय दत्त की माफी दिलाने का नैतिक अधिकार है जबकि उनके बेटे राहुल भट्ट के 26 नवम्बर 2008 के मुंबई हमलों के आतंकी डेविड हेडली के साथ संबंध उजागर हो चुके हैं। डेविड हेडली ने खुद स्वीकारा है कि वो मुंबई आकर राहुल भट्ट से उसकी जिम में मिला था और उसको आईएसआई एजेंट बनाना चाहता था। इसके अलावा हेडली ने राहुल भट्ट को 26 नवम्बर 2008 के दिन दक्षिण मुंबई के उस इलाके में जाने से मना किया था जहां धमाके हुए थे। वहीं राजनीतिक लोगों में काँग्रेस और समाजवादी पार्टी द्वारा संजय दत्त के समर्थन को समझा जा सकता है क्यूंकी संजय दत्त कह चुके हैं कि “काँग्रेस उनके खून में है” (समझा जा सकता है आपका खून कितना गंदा है) और उत्तर प्रदेश के चुनावों में वो सपा के लिए वोट भी मांग चुके हैं। सपा सांसद जया प्रदा का कहना है कि उन्होनें 20 साल आतंकी होने के दाग को झेला है इसलिए उन्हें अब माफी देनी चाहिए तो अगर समय ही माफी का पैमाना है तो लालू प्रसाद यादव को भी माफ किया जाना चाहिए जो पिछले 17 साल से चारा घोटाले का दाग झेल रहे हैं।
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इसके अलावा कुछ लोगों का कहना है की संजय दत्त ड्रग एडिक्ट से हटकर पारिवारिक जिम्मेदारियां बखूबी निभा रहे हैं और वो बदल गए हैं लेकिन देश में लाखों कैदी ऐसे है जिनका परिवार है, जो अपने परिवार के इकलौते कमाने वाले हैं और बदल भी गए हैं क्या उन्हें भी माफी इसलिए नहीं मिलेगी की वो सुनील दत्त- नरगिस के बेटे और फिल्मी कलाकार नहीं हैं। भारत की जेलों में लाखों बेगुनाह बंद हैं क्या उनके लिए आवाज़ सिर्फ इसलिए नहीं उठती कि उन्होनें किसी बड़ी शख्सियत की कोख से जन्म नहीं लिया। अगर अपराध करने के बाद अपराधी का बदलना कोई मायने रखता है तो कसाब को भी माफ कर देना चाहिए था। उसने भी कबूल किया था की वो बहक गया था और उसने गलत किया। दाऊद को भी भारत वापस बुलाकर देखा जाना चाहिए की वो सुधरा या नहीं अगर सुधरा तो उसको भी क्षमादान वकालत की जाए।
हमारा मीडिया भी संजय दत्त की फिल्मों के क्लिप दिखा दिखाकर अपनी टीआरपी बढ़ाने के साथ साथ लोगों को भावनात्मक रूप संजय दत्त से जोड़ने की कोशिश कर रहा है। हालांकि मीडिया अक्सर फिल्मी कलाकारों के समर्थन में खड़ा दिखता है और बॉलीवुड को बढ़ावा देने का काम करता रहता है। फिल्मी कलाकारों के नहाने धोने से लेकर छींकने तक की खबरों को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाकर दिखाना इनकी प्राथमिकता है। क्या किसी भी न्यूज़ चैनल ने दंगा पीड़ितों के साथ बातचीत और उनके साक्षात्कार दिखाये जैसा अक्सर 2002 के गुजरात दंगों के बारे में दिखाया जाता रहता है। ये एक बात ही मीडिया के बॉलीवुड प्रेम को दर्शाने के लिए काफी है। ये मीडिया के खबरों को दिखाने के ढंग का ही परिणाम है कि लोग राष्ट्रवादी संत बाबा रामदेव को ठग कहते हैं और राष्ट्रद्रोही संजय दत्त को मासूम।
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उन आम और खास लोगों को भी सोचना होगा जो उच्चतम न्यायालय के द्वारा आरोपी साबित व्यक्ति को ‘मासूम’ और उच्चतम न्यायालय की एसआईटी द्वारा ही क्लीन चिट पाये नरेंद्र मोदी को ‘हत्यारा’ बताकर उच्चतम न्यायालय की गरिमा का मज़ाक उड़ाते रहते हैं। संजय दत्त के संबंध में एक और पहलू ये भी है कि उन्होनें अपनी पिछली 18 माह की सज़ा के बाद जेल से बाहर आकर कहा था कि “मेरी माँ मुस्लिम हैं इसलिए मुझे जेल में पिटा जाता था” और मामले को सांप्रदायिक रंग देने कि पूरी कोशिश की थी। क्या ऐसे व्यक्ति को माफी देना सही है जो गुनाह और गुनहगारों को धर्म की नज़र देखता हो ? क्या इस माफी से लोगों का कानून से विश्वास नहीं उठ जाएगा ? क्या इससे ये संदेश नहीं जाएगा की कानून उच्च वर्ग और निम्न वर्ग में भेद करता है ? कानून की आँख में बंधी हुई पट्टी यही बतलाती है की कानून किसी वर्ग, जाति, मजहब और व्यक्ति को नहीं देखता तो फिर किस बात की माफी ?
http://anandpriyarahul.blogspot.in/2013/03/blog-post_24.html
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