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व्यवहार बदलो, त्यौहार नहीं

ये है हिंदुस्तान मेरी जान
ये है हिंदुस्तान मेरी जान
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ये तथ्य है कि “यदि तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो पानी के लिए होगा”, विश्व युद्ध का तो पता नहीं लेकिन भारत सहित दुनिया के कई देशों में पानी के लिए आंतरिक युद्ध आरंभ हो चुका है। एक अमेरिकी संस्था के उपाध्यक्ष का कहना है कि भारत को 2020 से पीने का पानी आयात करना होगा।” ये एक भयावह स्थिति है। पिछले कई दिनों से मीडिया में भी सूखे और पानी की बर्बादी पर बहस चल रही हैं। एक ओर महाराष्ट्र में पिछले 40 वर्षों का सबसे भयानक सूखा है और 34 जिलों के 11 हजार से ज्यादा गांव पीने के पानी को तरस रहे हैं वहीं दूसरी ओर गुजरात के सौराष्ट्र में भी 10 जिलों के 3918 गांवों को सूखे की चपेट में हैं।

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अब बात आती है कि पानी की बर्बादी कैसे रोकी जाए जिससे सूखे जैसी भयावह परिस्थितियों को रोका जा सके ? सभी अपने अपने तरीके से पानी की बर्बादी रोकने को कहते हैं। साल भर चुप रहने वाले ‘सेकुलर बुद्धिजीवी’ हर साल होली का त्यौहार आते ही ‘पानी बचाओ, सूखी होली खेलो’ का ज्ञानरूपी प्रसाद बांटने लगते हैं। ये ज्ञानरूपी प्रसाद बांटने वाले लोग वहीं हैं जो साल भर ब्रुश करते और दाढ़ी बनाते समय नल खुला रखते हैं, नहाने के लिए बाल्टी नहीं बल्कि ‘बाथ टब या पूल’ का इस्तेमाल करते हैं और गरीबों का त्यौहार माने जाने वाले “होली” पर ग्रहण की तरह लग जाते हैं। वहीं कुछ लोग आईपीएल में केवल महाराष्ट्र में लगभग ‘45 लाख लीटर‘ पानी की बर्बादी को देखकर महाराष्ट्र में आईपीएल का विरोध कर रहे हैं।

पानी अनमोल है और इसको बचाना सभी की नैतिक ज़िम्मेदारी है लेकिन क्या पानी बचाने के प्रयत्न होली को छोड़कर साल भर नहीं करने चाहिए जबकि वास्तविकता इसकी विपरीत है ? इस विषय पर मेरा मानना है कि हमारी सांस्कृतिक धरोहरों के प्रतीक त्यौहारों पर रोक ना लगाकर यदि हम गैर जरूरी वस्तुओं में होने वाली पानी की बर्बादी पर रोक लगाएँ तो देश का काफी पानी बचाया जा सकता है और अपने त्यौहारों पर भरपूर आनन्द भी ले सकते हैं। आप पूछेंगे गैर जरूरी वस्तुएँ क्या हैं ? आइये बात करते हैं गैर जरूरी वस्तुओं पर होने वाली पानी की बर्बादी पर :

1. कत्लखाने
2. जहरीले पेय बनाने वाली विदेशी कंपनियां

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एक ओर भारत में लोग 12 से 15 रुपये की पानी की बोतल खरीदकर पानी पी रहे हैं दूसरी तरफ कत्लखाने लाखों करोड़ों लीटर पानी बर्बाद कर रहे हैं। एक कत्लखाने में प्रति पशु सफाई में औसतन 500 लीटर पानी बर्बाद होता है जबकि एक व्यक्ति को प्रतिदिन औसतन 25 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। क्या ये ‘राष्ट्रीय अपराध’ नहीं है ? एक आधिकारिक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 36,031 लाइसेंसी कत्लखाने या बूचड़खाने हैं और हजारों बिना लाइसेंस के। एक नज़र बड़े बड़े कत्लखानों के आंकड़ों पर:

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मुंबई में चेंबूर के निकट देवनार में स्थित ‘देवनार कत्लखाना’, एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना है। ये 126 एकड़ जमीन के विशाल क्षेत्र में स्थित है। देवनार में हर दिन लगभग 1000 बैल, गाय, भैंस और 6500 भेड़ और बकरियों की हत्या की जाती है। इस तरह यहाँ 18 लाख 50 हजार लीटर पानी प्रतिदिन खर्च होता है। वहीं आंध्र प्रदेश के हैदराबाद स्थित कत्लखाने अल कबीर एक्सपोर्ट लिमिटेड में 6 हजार 600 पशु प्रतिदिन काटे जाते हैं और प्रतिवर्ष 48 करोड़ लीटर पानी बर्बाद किया जाता है। हिन्दुस्तान टाइम्स के 09/04/1994 के अंक में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कोलकाता के मोरी गांव कत्लखाने में17 लाख 50 हजार लीटर पानी प्रतिदिन लगता है। सिर्फ इन तीन बड़े कत्लखानों को देखा जाए तो लगभग 3 लाख लोगों के उपयोग का पानी प्रतिदिन नष्ट कर दिया जाता है तो कल्पना परिए पूरे देश के हजारों कत्लखानों में पानी की कितनी बर्बादी होती होगी ?

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दूसरी गैर जरूरी वस्तुएँ हैं जहरीले पेय बनाने वाली विदेशी कंपनियां। सामान्य रूप से पेप्सी- कोला की एक बोतल बनाकर बेचने में 10 लीटर पानी का खर्चा आता है। हालांकि बोतल में 300 मिली॰ ही पेय होता है बाकी पानी बोतल को धोने में तथा अन्य मशीनरी प्रयोग में खर्च होता है। भारत देश में पेप्सी कोला की लगभग 600 से 700 करोड़ बोतल प्रतिवर्ष बिकती हैं। अर्थात भारत में प्रतिवर्ष 6000 से 7000 करोड़ लीटर पानी इन कोला कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है। इतने पानी से प्रतिवर्ष 2 अरब 80 करोड़ लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है जो भारत की आबादी का 2.5 गुना है। दूसरी ओर भारत देश के 2 लाख से अधिक गाँव पीने के पानी से भी वंचित हैं। जिस देश में आज़ादी के 65 साल बाद भी 2 लाख गाँव यानि 40 करोड़ जनसंख्या यानि हर 3 में से 1 व्यक्ति को पीने के लिए पानी नसीब नहीं होता है, उस देश में कोल्डड्रिंक पीने से बड़ा कोई और पाप नहीं हैं।

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“सेंट्रल ग्राउंड वॉटर एथॉरिटी” का कहना है की सरकार इन कोला कंपनियों से भूगर्भ जल के इस्तेमाल का कोई शुल्क नहीं लेती है, जबकि खेतों में भी पानी छोडने का टैक्स सरकार द्वारा लिया जाता है। कितनी आश्चर्य की बात की एक तरफ पेप्सी और कोला जैसी विदेशी कंपनियां भारत के बेशकीमती भूगर्भ जल का इस्तेमाल करके हजारों करोड़ कमा रही हैं और हमारी सरकार इस पानी पर कंपनियों से कोई शुल्क नहीं ले रही हैं। जिस पानी से भारत के लाखों लोगों एवं पशुओं की प्यास बुझाने का इंतेजाम हो सकता है, वही बेशकीमती पानी ज़मीन से दोहन करके ठंडे पेयों में बर्बाद किया जा रहा है जिसका पैसा भी अमेरिका जा रहा है। भारत सरकार के विभाग, ब्यूरो ऑफ़ इंडस्ट्रियल कॉस्ट एंड प्राईसेस का कहना है कि एक बोतल की कीमत 70 पैसे होती है। अगर एक बोतल 10 रुपया में बिक रहा है तो लगभग 1500% का लाभ ये कंपनी एक बोतल पर कमा रही है। इस तरह हमारे देश का 6000 से 7000 करोड़ लीटर पानी बर्बाद करके 7000 करोड़ रुपये लूटकर वो भारत से ले जाती हैं और ये लूट पिछले 15 वर्षों से निरंतर जारी है।

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जहां एक ओर गरीबों को मिलने वाले राशन के अनाज की कीमत दोगुनी कर दी वहीं दूसरी ओर इस जहरीले पानी पर एक्साइज़ ड्यूटी 8% घटा दी गयी। जिस देश के अधिकांश भागों में औसतन हर साल सूखा पड़ता हो, जिस देश के लाखों गाँव एवं करोड़ों मनुष्य, पशु, पक्षी पीने के पानी को तरसते हों वहाँ हर साल ठंडे पेय के नाम पर हजारों करोड़ लीटर पानी को बर्बाद करना एक “राष्ट्रीय अपराध” है। पेप्सी- कोला के कुल 64 कारखाने जहां जहां भी लगे हुए हैं वहाँ की ग्राम पंचायत, नगर परिषद से भूगर्भ जल निकालने की अनुमति भी इन कंपनियों ने नही ली है। इन कंपनियों द्वारा प्रतिदिन करोड़ों लीटर पानी निकालने से संयंत्र के आस पास के गाँवों का भूगर्भ जल बहुत ही कम हो जाता है, इसी कारण केरल के प्लाचीमडा गाँव में कोका कोला को संयंत्र को बंद कराने के लिए आंदोलन हुआ था और केरल में कोका कोला पर रोक भी लगा दी गयी है साथ ही कोका कोला कंपनी को $47 मिलियन का मुआवजा भी देना पड़ा।

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. . . . . . . . . . लेकिन अफसोस ये ‘सेकुलर बुद्धिजीवी’ और तथाकथित समाजसेवी लोग होली पर पानी बचाने के लिए खूब हो हल्ला करते हैं लेकिन जहां पानी की असली बर्बादी हो रही है उस पर मौन साधे हुए हैं। पेप्सी- कोला जैसी कंपनियों से करोड़ों घूस लेकर चुप रहने वाले ये लोग/ मीडिया क्या देश के लोगों से गद्दारी नहीं कर रहे है ?

http://anandpriyarahul.blogspot.in/2013/04/blog-post.html

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